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The Matrikas, or perhaps the letters from the Sanskrit alphabet, are viewed as the subtle type of the Goddess, with each letter Keeping divine electrical power. When chanted, these letters combine to kind the Mantra, creating a spiritual resonance that aligns the devotee While using the cosmic energy of Tripura Sundari.

बिंदु त्रिकोणव सुकोण दशारयुग्म् मन्वस्त्रनागदल संयुत षोडशारम्।

ध्यानाद्यैरष्टभिश्च प्रशमितकलुषा योगिनः पर्णभक्षाः ।

यदक्षरैकमात्रेऽपि संसिद्धे स्पर्द्धते नरः ।

पद्मरागनिभां वन्दे देवी त्रिपुरसुन्दरीम् ॥४॥

ऐसा अधिकतर पाया गया है, ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है। लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना जोकि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न कर लेता है उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है। वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में नहीं जाता Shodashi है। वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।

हव्यैः कव्यैश्च सर्वैः श्रुतिचयविहितैः कर्मभिः कर्मशीला

In the event the Shodashi Mantra is chanted with a clear conscience and a established intention, it will make any wish arrive correct to suit your needs.

कामाकर्षिणी कादिभिः स्वर-दले गुप्ताभिधाभिः सदा ।

The Tripurasundari temple in Tripura point out, locally known as Matabari temple, was very first founded by Maharaja Dhanya Manikya in 1501, although it was possibly a spiritual pilgrimage website For numerous generations prior. This peetham of power was at first intended to become a temple for Lord Vishnu, but because of a revelation which the maharaja had inside of a aspiration, He commissioned and put in Mata Tripurasundari in its chamber.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥७॥

Cultural gatherings like people dances, songs performances, and performs are integral, serving like a medium to impart regular stories and values, Specifically into the more youthful generations.

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

बिभ्राणा वृन्दमम्बा विशदयतु मतिं मामकीनां महेशी ॥१२॥

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